क्या वो दिन थे के: रहा सर पे : मोहब्बत का जुनूं !
हुस्न की बाहों में डूबा था मसर्रत का जुनूँ !
हमको था पास ए वफ़ा सर पे: मुरव्वत का जुनूँ !
निंद से बेज़ार आंखे, था मजर्रत का जुनूँ !
अब तो हमसे भी हमारी खो गई परछाइयाँ
हे मुक़द्दर मुझको तेरे हिज्र की तनहाइयाँ !
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बेदार खानपुरी-इलियास पटेल।
- Umakant