पैदा होते ही
मारने को तैयार
कैसा व्यापार
--
आसमां छूती
उम्मीद से आगे
ख्वाहिश है
--
खुद मिटकर
जगाती संसार को
जननी है वो
---
होती शिकार
बलात्कारी संसार
लिंग काट दो
--
जिन हाथों से
मर्यादा को मरोड़ा
काटो उनको
----
सजा देने का
अधिकार हमे दो
मसला हल.

--डॉ अनामिका--
--विधा -- हाइकु--
दिनांक २३-०८-२०२५

Hindi Poem by डॉ अनामिका : 111947504
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