हे विष्णु हे हरि।
नारी का हो रहा है अतिशय चीर हरण हे विष्णु हे हरि । असह्य वेदना के सागर में डूब गया है संसार हे विष्णु हे हरि।
जय जय सहस्रबाहु नारायण
कोटि-कोटि प्रणाम।
अति अति अपमानित हो रहा है अब जन जीवन जहां नित नित होत चीर हरण
नारी के।
करुण चीख पुकार आर्तनाद स्वर बेधत
मन ज्यों झुलसे गगन हो प्रज्वलित अंगार।
दशशीश मचावत भुचाल नारी पर भारी
हे हरि। नारी के वेदना अपार तुम बिन कौन विदारे
हे हरि। क्षत विक्षत हो रही कंचन
काया पल भर में। जल रही है कामना
वासना अनल में नारी हे हरि।
हदय की ज्वाला मन की पीड़ा से हो
रही है दग्ध नारी के तन मन अंतर्मन
हे हरि।
विदीर्ण हो रहा है घर परिवार आंगन प्रांगण हे हरि। बढ़ाओ द्रुपद सुता सम अनेकों
नारियों को तुम अब चीर हे हरि।
कल्पना सपना स्वर्णिम आलीशान महल
परिवार जल कर हो रहा खाक हे हरि।
कब तक चलेगी रहेगी धाक प्रलयकारी
दशकंठ हे हरि।
करो कृपा अब तुम तेरे आगे ना चले किसी
की , ना एक भी पत्ता डोले हे हरि।
नारी जीवन समर होत आक्रमण दशानन
हे हरि। करो विध्वंस वासना कामना ज्वार
असार संसार हे हरि। आओ आओ आओ
अब धरा पर संभालो संसार की पतवार
हे हरि।
दासी बसाकर रोम रोम में तुझको
करे वंदन दास हृदय चंदन लगाएं बन छाया साया गोपी गोप कुमारी की हे गोविन्द गोवर्धन बद्री विशाल सुदर्शन चक्र धारी की
स्तुति भक्ति सहित करे चीर बढ़ाने की।
हे पट पीताम्बर धारी सुदर्शन चक्र धारी
वृन्दावन बिहारी जय जय बोलें तेरे स्वरुप
अनूप मनमोहन दीनबंधु दीनानाथ
बांके बिहारी की।
बढ़े चीर मिटे पीर सब नारियों की
हे हरि हे हरि हे हरि।
विनती करो स्वीकार अर्जी पर हो विचार
हे हरि हे हरि हे हरि।
जय जय श्री सहस्रबाहु नारायण
कोटि-कोटि प्रणाम।
*काल्पनिक चरित्र चित्रण। प्रार्थना
जग मंगल की जग उद्धार की*।
- Anita Sinha