चीर हरण
नारी जीवन बना रण स्थल जय जय
श्री कृष्ण हरे। नारी अबला की दारुण
व्यथा जय जय कृष्ण हरे। जीवन रंगमंच
शतरंज नारी जीवन दुशासन करत चीर हरण
भ्रमण करे। नारी करत पूजन वंदन नित नित जय श्री कृष्ण चरण नमन करे।
संख्या अरबों-खरबों से भरी खचा-खच
रंगमंच शतरंज नारी को द्रुत क्रीड़ा में
पांडव सम मनुजों ने बाजी हारे। शबब बना चीर हरण नारी के जब द्रुपद सुता सम नगर घर हर नारी के अब बेमौके चीर हरत फिरे।
करे आस चीर बढ़ाने की सब नाते-रिश्तेदारों से।
मन उठत शोर गूंजत करुण क्रंदन नारी के विलाप कि कहीं से भी अब चीर तो बढ़े।
हुई प्रयास विफल रंगमंच शतरंज नारी जीवन समर शमन भयो अब कौन विपत्ति
हरे। पल पल करत शमित अपमानित
दुशासन नारी रण पराजय अब किससे
चीर बढ़े। नारी करत वंदन कोटि-कोटि बार आर्त प्रार्थना करें जय श्री कृष्णा
करे प्रतिबंध अनुबंध चीर हरण हे कृष्ण
हे कृष्ण जय जय कार करे। अब आओ
लाज बचाओ हे कृष्ण बंधी है केवल तुझसे
ही आस मिटे भव त्रास जय जय हे कृष्ण
द्रुपद सुता सम अनेकों नारी जीवन दुशासन
विध्वंस करे।
नारी जीवन संग्राम संहार दशकंठ
जय जय श्री कृष्णा हरे। जय जय श्री कृष्णा हरे। जय जय श्री कृष्णा हरे।
नारी जीवन रण परास्त दशानन
आए श्री कृष्ण मिटे भव त्रास बचे लाज
जय जय श्री कृष्णा हरे। जय जय श्री कृष्णा हरे।
नारी हुई आतंकित शमित जीवन
अकारण अकाल मृत्यु से ग्रसित दशशीश
जय जय श्री कृष्णा हरे। जय जय श्री कृष्णा हरे।
नारी सुरक्षा बाधित शमित प्रतिबंधित
कैसे और कौन अब चीर हरण शमन करे।
द्रुपद सुता सम अबला असंख्य बाला
ललना किशोरी महिला माता सब मिल
सामूहिक प्रार्थना श्री कृष्ण चरण निहारत
गगन कब अब चीर बढ़े। आकर धरा पर
कृष्ण बिन कौन त्रास हरे। झर झर बहत
अश्रु पाटत आंचल मन कहत अब नारी
बिन सृजन कौन करे। जब पल पल होत
विध्वंस अंश नारी संग्राम संहार दशकंठ करे।
होवे अब नवल सृष्टि निर्माण नवल विहान
सह नवल उत्थान जय विजय कहत सुनत
सृजत दासी मां सरस्वती जी के चरण जय जय श्री कृष्णा हरे। जय जय श्री कृष्णा हरे।
जय जय श्री कृष्णा अब नारी जीवन में
चीर बहुल बढ़े। श्री कृष्ण छत्र छाया में
नारी जीवन सकुशल भ्रमण करे।
आए श्री कृष्णा लाजवाब बचावन को
द्रुपद सुता ह़सि विहंसि जय श्री कृष्णा
अंग लगे अंग लगे चीर बढे चीर बढ़े चीर
बढे ढके द्रुपद सुता सम सब नारी अब कौन
दशकंठ दुशासन श्री कृष्णा के आगे बढ़े।
हे कृष्ण जी महाराज आपसे निवेदन है
कि आप अब आएं धरा पर और नारी
की वेदना को खत्म करें। नारी सृजन पर
ना अंकुश लगे और दशानन विध्वंस करें।
जय जय हे सहस्रबाहु नारायण
कोटि-कोटि प्रणाम।
भूल चूक माफ करो हे कृष्ण हरे।
काल्पनिक चरित्र चित्रण और
कथानक है। बस कविता में जान डालने
के लिए शब्दों का प्रयोग किया गया है।
कृपया पाठकों निवेदन है कि रचना पढ़कर
आहत नहीं हों।
जय जय हे मां सरस्वती कोटि-कोटि प्रणाम।
- Anita Sinha