नारी,,,

पता नहीं क्यों,
लोग कहते हैं कि,,
नारी तो बेचारी हैं।
जब के उसके हाथ में,,
घर की डोर सारी है।
सास ससुर और पति का साथ,,
बच्चों की भी निभाती जिम्मेदारी है।
शायद इसीलिए कहते हैं,
कमजोर अबला इसको,,
क्योंकि जब भी हारी,,
रिश्तों से ही हारी है।
बराबरी का हक तो,,
महज़ एक ख्वाब हैं,,
अपने अस्तित्व से जंग तो,,
अब भी जारी है

Hindi Poem by Paramjeet Kaur : 111943325
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