अल्फाजों का आशियाना
विषय - संयोग
तुम्हारा मुझसे आकर मिलना,
ये भी कोई संयोग नहीं है।
ईश्वर ने कुछ सोचा होगा,
तुम्हें जो चाहिए वो यहीं है।।
क्योंकि एक बार टकराना,
इत्तिफाक हो सकता है।
पर बार बार का टकरा जाना,
कुछ तो खास हो सकता है।।
आंखों से आंखें मिल जाना,
पर शर्म से निगाहें झुक जाना।
लफ्ज़ अपने खामोश रखकर,
निगाहों से बहुत कुछ कह जाना।।
अंजानी सी कहीं ये मुलाकात,
जानी पहचानी बन सकती है।
मुलाकातें अगर बढ़ गईं तो,
प्रेम कहानी भी गढ़ सकती है।।
बैठकर आमने सामने दोनों,
अपना हाले दिल बता सकते है।
जज्बात उमड़ते है जो दिल में,
एक दूसरे से वह कह सकते है।।
मिलने मिलाने का दौर बढ़ा तो,
रिश्ते मजबूत बन सकते हैं।
ईश्वर के इस संयोग से,
विवाह सूत्र में बंध सकते है।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री