Hindi Quote in Poem by Amit Katara

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एक रिश्ता कमर मे बंद है
उसे मेरे नाता है
यह कहना गलत हो गया
मैं उसका अश हु हो मेरे पिता है
उसे रिश्ते से यह मेरे रिश्ता है
कमर के बाहर बैठ मैं वक्त को समझ रहा हु
दूसरे लोगो के लिए वक्त सामना गति पर घूम रहा है
मेरे लिए वक्त धीमा चल रहा है
जो बंद कमर में रिश्ता है उसके लिए वक्त कैसे चल रहा हो गया
एक मिनट भी एक दिन के बराबर हो सकता है
यह एक दिन एक मिनट में सिमट कर रहे गया हो
पूरे दिन में एक ऐसा पहरे आता है
मेरे आस पास बैठ रिश्ते भी मेरे जैसे लगने लगते है
जो कमरों में बंद है उन सबका कोई न कोई रिश्ता है
वो रिश्ता बहरा खड़े हो कर मिलने का इताजर कर रहा है
घड़ी मे अभी पांच मिनट बाकी है
वो पाच मिनट सदियों जीतने लगते है
घड़ी की टिक टिक की आवाज कोनो तक आती है
पास में खड़े रिश्ते के दिल की थक थक महसूस होती है
एक आवाज आती सब उसे सुनते एक एक कर के आना
कही दिनो बाद मैं अपने पापा से मिलता हु
उनने दिनो एक बीच कही रिश्ते मिलने गए थे
क्युकी वो रिश्ते सफर तय कर के आए थे
मेरी मुलाकात के बीच के दिनों में ...
रिश्तों के चहरो उनकी बातो से समझता था
मेरे पापा कैसे है ...
फिर से एक आवाज आई वक्त पूरा हो गया
तब मुझ वक्त की चालकी समझे आई
कमरे के बाहर वक्त धीमा चाल रहा था
कमरे के अदर वक्त भाग रहा था
एक शाम ऐसी आती है सब उसे कमरे में होते है
मैं अकेला घर में होता हु
अगली सुबह मुझ भाई उठता है
उसके चहरे की खामोशी कुछ कहे रही थी
घर से दो गाड़ियां निकलती है,
एक गाड़ी में होता हु
घुले आसमान में कपड़े से बंद मेरे पापा होते है
दूसरे सब उस बॉडी कहे रहे होते है
मेरी आखरी म मुलाकात दो दिन पहले तो हुई थी

Hindi Poem by Amit Katara : 111941476
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