चमकती हुई धूप तेज़ी से निकली
गुज़रती हुई बारिशों को बुलाने
हवाओं ने ज़िद की कि हम भी चलेंगे
लगीं ठंडकें अपने पैकर सजाने
मिली थी ख़बर मौसमों को कहीं से
किसी कुंज-ए-गुलशन में हैं दो दिवाने
वो बरसों के बा'द आज यकजा हुए हैं
जो बीती है इक दूसरे को सुनाने
दरख़्तों ने झुक झुक के ता'ज़ीम बख़्शी
बढ़े सब्ज़ा-ओ-गुल भी आँखें बिछाने
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