खुला आसमां तन्हाई में लिपटी रातें
मगरुर था वो अकेला चांद
लेकर खामोशी के साथ कुछ अधूरी बातें
कुछ बेपरवाह पतंगबाजी करता
खुद के जज्बातों के साथ
क्या लिखूं तुम्हे मैं ?
अतीत या कोई अधूरा किस्सा....
सिमट सा जाता , लिपट यूं जाता
पास होकर तस्वीरों से रूठ यूं जाता
पलकों से छुप कर आंसू
सिसक के साथ गालों पर लुढ़क यूं आता
खुद को संभालते हुए टूट यूं जाता
क्या शिकायत करूं मैं,
मुकदमा दर्दों का पहले ही जीत चुका था
क्या लिखूं तुम्हे मैं ?
अतीत या कोई अधूरा किस्सा....
-Manshi K