रास्ते याद नहीं राह-नुमा याद नहीं
अब मुझे कुछ तिरी गलियों के सिवा याद नहीं
फिर खयालों में वो बीत हुए सावन आए
लेकिन अब तुझ को पपीहे की सदा याद नहीं
एक वादा था जो शीशे की तरह टूट गया
हादिसा कब ये हुआ कैसे हुआ याद नहीं
हम दिया करते थे अग्यार को ता’ना जिन का
अब तो हम को भी वो आदाब-ए- वफा याद नहीं
वज्अ’-दारी से है मजबूर मिरा प्यार ‘कतील’’
सब पुराने है कोई दाग नया याद नहीं
……… कतील शिफाई .