दीवार-ए-राह में है, बरखुरदार मददगार,
हम इधर तपते, वाह वो उधर भी राहगुजर
वारिस-ए-साया कौन, या सूरत-ए-राज़,
हर धूप से पूछें, जवाबहै फिर से नासाज
राह-ए-इश्क में दीवार, फासला है कैसे,
हम तपिश से पिघले, वो शिद्दत से जैसे।
छाँव का वारिस कौन, ये ग़ुमन-ए-हयात,
हर बार सवाल करें, धूप से, शब-ओ-रात.
बदल रही फिजा इस धूप में कभी कभी
बादल भी है हवा भी छांव बस कभी कभी
दोस्तो ने जराए राह झुठी बदल रखी है
सुन अनसुना करके कब सच्चाई चखी है
हर एक सांस में वो जर्फ, दर्द ही पाते हैं
जिंदगी का सफर, बस कभी खो जाते है
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दीवार-ए-राह में है, कैसे ये जादूगर,
हम इधर तपते, वो उधर भी राहगुजर।
वारिस-ए-साया कौन, या सूरत-ए-राज़,
हर धूप से पूछें, जवाब है फिर से नासाज।
राह-ए-इश्क में दीवार, फासला है कैसे,
हम तपिश से पिघले, वो शिद्दत से जैसे।
© जुगल किशोर शर्मा बीकानेर