गीता ए कर्म जाना, यह ख्याल आया,
नींद खुल गई, खुद से इकबाल आया
हकीकी ए आजादी को जान कर भी,
मोह ए समन्दर मे ंगोता इसपार आया
अद्वैत की अलगाव हर बार कोन सुनाए,
ला-मजाज़ी में, वक़्त के सवाल जाया।
फरिश्ते, शैतान, बुज़ुर्ग और इंसान को,
फख्त ए जहॉं क्यु मन मिजाज पाया ।
कैवल्य पुकारे, सुखों की मंजिल इस राह में,
अरमान मिट जाए, खुश रहा हरहाल आया ।
परमहंस पंख फैला के उड़ा पुरे जहॉं में
रूह से समझ ही मिले, सबमें राम समाया ।
सगुण, निर्गुण, फख्तरंग भरम हटाके
रूह का असल, हर रंग में रंगारंगाया।
खुद ही को देखा, हर तरफ से रोशनी को ले
तजाबीज, फितरत समन्द ए कुव्वत जब आया ।
@ जुगल किशोर शर्मा बीकानेर