वो प्रेमिका बन जाती है...

आवाज़ दिल की पन्नों पे उतर आती है, फिर इस तरह एक कविता बन जाती है

बाकी ना रहे कुछ भी दिल के अन्दर,रहे तो कवि की जान पे बन आती है

पहन के लिबास कवि के भावों का, अपने आप पे ही फिर बड़ा इतराती है

समंदर की लहरों सी चंचल है बहुत,उठती -गिरती है,आती है चली जाती है

एक दूजे बिन नहीं रह सकते हैं दोनो, मैं प्रेमी और वो प्रेमिका बन जाती है

©ठाकुर प्रतापसिंह राणाजी
सनावद (मध्यप्रदेश)

English Shayri by ठाकुर प्रतापसिंह राणाजी : 111936952
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