अगर सच मे समझते हो तो ,
आज से मेरी ख़ामोशी समझना।
आज से हम कुछ नहीं कहेंगे,
हो सके तो बिन कहे अल्फ़ाजो को सुनना।
हाथ थक चुके है अब एहसास लिख लिख के,
पढ़ सको तो तुम अब इन कोरे काग़ज़ों को पढ़ना।
धुँधली सी होने लगी है अब चेहरे की आभा,
हो सके तो महसूस करना इन अश्को का छलकना।
यूँ तो ये सब कुछ भी समझना जरूरी नही,
पर समझ जाओ तो कम होगा इस दिल का तड़पना।
दिल की ख्वाइशों का यूँ तो कोई अन्त नही,
पर अब औऱ नही चाहती ये रूह भी भटकना।