चिंताओं की गठरी बाँधे.. ...
चिंताओं की गठरी बाँधे, जीवन भर ढोए।
स्वार्थी रिश्ते-नातों ने ही, पथ-काँटे बोए।।
संसाधन के जोड़-तोड़ में, हाड़ सभी तोड़े।
एक लंगोटी रही हमारी, बाकी सब खोए।।
मोटी-मोटी पढ़ी किताबें, काम नहीं आईं।
जाने-अनजाने में हमतो, आँख मींच सोए।।
होती चिंता,चिता की तरह, समझाया मन को ।
नहीं किसी को मुक्ति मिली है, हार मान रोए।।
प्रारब्धों के मकड़ जाल में, उलझ गए हम सब।
पाप पुण्य के फेरे में पड़, पुण्य सभी धोए।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "