*दोहा-सृजन हेतु शब्द*
*नीर, नदी, धरती, बिवाई, ताल*
आँखों से जब भी बहा, मोती बनकर *नीर*।
मानवता ने पढ़ लिया, उसके मन की पीर।।
*नदी* जलाशय बावली, जीवन अमरित-कुंड।
ग्रंन्थों में हैं लिख गए, ऋषिवर कागभुशुंड।।
*धरती* की पीड़ा बढ़ी, कटे वृक्ष के पाँव।
सूरज की किरणें प्रखर, नहीं मिले अब छाँव।।
फटी *बिवाई* पाँव में, वही समझता पीर।
लाचारी की दुख व्यथा, बहे आँख से नीर।।
*ताल* तलैया सूखते, सूखे नद जल-कूप।
उदासीन दिखते सभी, क्या जनता क्या भूप।।
मनोज कुमार शुक्ल *मनोज*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏