विषय - दो वक्त की रोटी
अपना घर परिवार चलाने के लिए,
जब करता कड़ी मेहनत मजदूर।
हाथ में कुछ पैसा आ जाए,
इस लिए घर से रहता है वह दूर।।
अपनों की भोजन व्यवस्था के लिए,
परदेश भी वह चला जाता है।
कमाई का साधन बनाने के लिए,
जी तोड़ परिश्रम वह लगाता है।।
इज्जत की दो रोटी के लिए,
छोटे बड़े काम में कोई शर्म नहीं करता।
बस गलत काम से परहेज करके,
अपने परिवार का भरण पोषण करता।।
सर्दी, गर्मी, वर्षा के मौसम में भी,
दो वक्त के भोजन की करता वह व्यवस्था।
घर में कोई भूखा न सोए,
चाहें हो जाए उनकी हालत खस्ता।।
एक नई उम्मीद और आशा के साथ,
जब वह सुबह मजदूरी पर निकलता।
आज चार पैसे ज्यादा है कमाना,
बस यही सोच से वह प्रतिदिन है विचरता।।
किरन झा(मिश्री)
-किरन झा मिश्री