कभी जो तुम आओगी मेरे मन में उतर जाने को तो संभल कर आना फर्श पर यादों की काई जमा है, दीवारों पर उदासी की सीलन चढ़ आई है, टूटी उम्मीदों की छत से टपक रही है निराशा की बूंदे क्योंकि बाहर हो रही है असफलतओं की बारिश.. तुम्हें बसना है तो अपनेनुसार संवारना होगा इसे...!!!