मुड़ कर जब भी मैनें तुम्हें देखा तो देख नहीं पाया
तुम्हारी चंचलता तुम्हारे होंठ तुम्हारे बाल तुम्हारी सुंदरता
मैनें देखा तो केवल तुम्हारा जुनून तुम्हारे घाव तुम्हारी उड़ान
शायद इसलिए मुझ तक पहुँच हि नहीं पाया आकर्षण
और चुपके से प्रेम कर गया आलिंगन ताकि ' मैं '
कह सकूँ ग़ज़ल नग्में तुम्हारे संघर्ष पे ।

Hindi Poem by Kunal Kanth : 111928922

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