विषय - मेरा चांद
दिन गुजरे , सालें गुजरी,
बिना बताएं ही तुम चले गए।
एक एक दिन कैसे काटा है,
अश्क भी अब तो सूख गए।।
दिन रात तेरी यादों के साथ,
हर लम्हा हमनें गुजारा था।
कभी तो इंतजार खत्म होगा,
इस लिए ही रास्ता निहारा था।।
तुम्हारे चांद से मुखड़े को,
दिल में हम बसा बैठे थे।
मंद मंद मुस्कान तुम्हारी,
दिल में तूफान मचा देते थे।।
जिसकी एक झलक पाने को,
सब कितना आतुर रहते थे।
वह मेरे इतने करीब थी कि,
लोग ईर्ष्या से जलते रहते थे।।
शायद लोगों की बुरी नजर ने,
हमारे रिश्ते में दरार किया।
एक छोटी सी गलतफहमी ने,
हमारे रिश्ते को तार तार किया।।
उस गलतफहमी के चलते ही,
बिन बताएं ही वह कहीं चली गई।
कहां कहां नहीं ढूंढा मैनें उसको,
आसमां खा गया या जमी निगल गई।।
उसकी बातें और उसकी यादें,
बस अब इनका ही सहारा था।
पता नहीं वह कब लौटेगी,
उसके बिन न हमारा गुजारा था।
उसकी ख्वाबों ख्यालों में,
जीवन ऐसे ही गुजर रहा था।
यकायक उसके सामने आने पर,
भौचक्का सा मैं रह गया था।।
उसका अचानक यों आ जाना,
जैसे ईद के चांद का दिखना।
खुशी अपनी जाहिर करते हुए,
बाहों में अब उसकी है लगना।।
मेरे चांद तुम जाना नहीं अब,
छोड़कर मुझे तुम मेरे हाल पर।
सितम चाहें जितने भी कर लेना,
सितारों पर नहीं होगी अब कभी नजर।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री