मैं चाहता हूं कि
मैं चाहता हूं कि
मैं हर वो बात तुमसे करुँ
जो मैं खुद को या तुम्हें लेकर
खुद से करता हूं।
अपनी और तुम्हारी ही क्यों
मैं तो हर वो बात
जिसका सम्बंध तुमसे है , मुझसे है ,
मेरी और तुम्हारी हर दिन की दिनचर्या से है
उन लोगों से है ,उन चीजों से है
जो मेरी और तुम्हारी जिन्दगी में हर दिन आते है
या उन घटनाओं से है ,जो मेरे और तुम्हारे साथ हर दिन घटित होती हैं ,
जो तुम्हें खुशी देती हैं , परेशान करती हैं ,
या फिर मुझे भी अशांत करती हैं , सुकून देती हैं ,
किसी दिन की उपस्थिति को सार्थक बनाती हैं ,
या उसे किसी दुरूह स्वप्न सा निरर्थक सिद्ध करती हैं ।
वे सारी बातें मैं तुम्हारे पास बैठकर तुमसे करुँ ।
तुम उन्हें अपनी पूरी तन्मयता से मन लगाकर सुनो
कभी खुश होकर अपनी मधुर मुस्कान समेत मेरी ओर देखो
तो कभी दिलासा देने वाली भंगिमा के साथ मेरे स्पंदन का जीवन्त हिस्सा बनो ।
ये सब कुछ मेरे साथ हो
मेरे और तुम्हारे सामने हो
तुम्हें इसमें खुशी मिले ,
कभी कभी तुम चिंता भी जताओ
और तुम्हारी उस खुशी या चिंता पर
मैं इस तरह से इतराउँ
जैसे मुझे मेरे इस जीवन का
वास्तविक अर्थ मिल गया हो ,
या मैंने अपना उद्देश्य पा लिया हो ।
पर जिन्दगी के प्रश्न इतने सरल होते
कि उनके उत्तर हमारी इच्छा के अनुकूल प्रकट हो जाते !
तो मैं यह इच्छा करता ही क्यों ?
फिर भी मैं चाहता हूं कि
मैं अपनी और तुम्हारी हर बात ,तुमसे ही करुँ,
और तुम उसे सुनो ।
……………… सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा , साहिबाबाद।