विषय - अद्भुत सौन्दर्य
दिनांक -23/02/2024
वो सांवली सलोनी सी सूरत,
एक नजर में भाती थी।
अपने भोले अल्हड़पन से,
सबके मन को रिझाती थी।।
उसके सुंदर से नयन नक्श,
मुखड़े पर चार चांद लगाते थे।
तीर कमान सी भौहें उसकी,
दिलों पर छुरियां चलाती थे।।
अपने गुलाबी अधरों से जब,
कातिल मुस्कान बिखेरती थी।
कितने ही घायल हो जाते थे,
जब हिरनी आंखों से देखती थी।।
लंबे काले घुंघराले केशों को,
जब गजरे से अपने सजाती थी।
कोई अप्सरा जैसे सामने खड़ी हो,
ऐसे वह मन को लुभाती थी।।
उसके मन और तन दोनों ने,
क्या अदभुत सौंदर्य पाया था।
संस्कार और गुणों की खान से,
जैसे कोई हीरा निकलकर आया था।।
किरन झा ( मिश्री)
-किरन झा मिश्री