शब्दों में जो नहीं कह सकते, वह भाव प्रेम है।
भाव समझकर जो समझ जाए वह स्वभाव प्रेम हैं।।
दूर नहीं हो सकता मैं, तुझसे मिलना चाहता हूं।
कौन हरि की तुम चंदा, खुद से पूछूं और बताता हूं।।
मैं बंधा हुआ धर्म सूत्र में, कुछ तेरी भी मर्यादाएं है।
कैसे छोड़ूं साथ तुम्हारा, मिल गयी हाथों की रेखाएं हैं।।
-हिन्दी जुड़वाँ-