दो वक्त की रोटी खाने को क्या-क्या करना पड़ना है।
प्यास बुझाता दरिया उसको प्यासा मरना पड़ता है।।
चाहत थी न गुजरेंगे हम और कभी जिन गलियों से,
वक्त का चक्कर ऐसा है हरबार गुजरना पड़ता है।
मारो काटो रिक्त करो जैसे चाहो यार मेरे,
ये मत भूलो इसी जगह पर वापस भरना पड़ता है।