Hindi Quote in Microfiction by Anita Sinha

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दीप शिखा उपन्यास धारावाहिक लेखन प्रतियोगिता भाग इक्यावन।

जय जय मां शारदे कृपा करो है मां शारदे लिखने को नमन करते हैं है मां शारदे देखो को उत्कृष्ट बना दो ही मां शारदे कोटि-कोटि प्रणाम करते हैं मां शारदे जय जय मां शारदे।

सुबह के 5:00 बजे थे। पूर्व दिशा में अरूणिमा धीरे-धीरे फूट रही थी । देवू की मां का प्रायः इसी समय में जगना होता है। उन्हें प्राकृतिक सौंदर्य का
आस्वादन करना पसंद है। सबसे पहले उन्होंने धरती मां को प्रणाम किया उसके बाद
लान में जाकर टहलने लगी थी।
पक्षियों की चहचहाहट शुरू हो गई थी ।थोड़ी देर टहलने के बाद उन्हें चाय पीने की तलब महसूस हुई।

फटाफट किचन में जाकर उन्होंने दो कप चाय का पानी चढ़ा दिया। दूध चीनी चायपत्ती डाली, थोड़ी
देर खौलाने के बाद , जब चाय का रंग बादामी हो गया
तो गैस आफ कर दिया और चाय लोटे में छान लिया

देवू की मां को मालूम है कि देवू के पापा को 5:30 बजे चाय चाहिए होता है तो उन्होंने देबू को आवाज दी पिताजी को जगाने के लिए। देवू के पिता जी ने कहा, तेरी मां ने चाय बना दी है यही लगता है।
देवू के पिता को पत्नी की आवाज के टोन से ही पता
लग जाता है कि ज़रुर चाय के लिए ही मुझे देवू को
कहकर बुलवाया होगा।

आज छुट्टी होने के कारण देवू के मां पिता जी
लान में बैठकर प्रकृति का आनंद लेते हुए चाय पियेंगे। शुभ दीपावली त्यौहार के अवसर पर
सपरिवार इकट्ठे रिलेक्स करने की इच्छा मन में
जाग रही है। परिवार के मेल मिलाप को आधार
देने के ख्याल से ही मां ने देवू से कहा , सुन !
तेरी चाय मैंने टेबल पर रखी है तो तुम भी चाय का कप लेकर फटाफट बिना देरी किए
लान में आ जाओ , हम सब भी यहीं पर बैठकर
चाय पी रहे हैं।

देवू ने बिना मां की आज्ञा का तुरंत पालन करते
हुए चाय का कप लेकर वहीं पर आ गया। मां ने देवू
से पूछा कि आज तेरा कहीं जाने का प्लान तो नहीं है ,
देवू ने कहा, अभी तक तो नहीं। वैसे मैंने दिवाली के
बाद शिखा से मिलने को कहा था। परन्तु फिर भी एक बार पहले मैं शिखा से पूछ कर तसल्ली कर लेना
चाहता हूं कि वो फ्री भी है या नहीं।

अब मां ने कहा,
फिर ठीक है बेटा। देवू ने चाय पीने के पश्चात् मां पिताजी के चरण स्पर्श किए। प्रत्येक दिन तो नहीं
लेकिन विशेष मौके पर देवू अपने मां पिता जी एक
चरण स्पर्श करते हैं । चाहे कुछ भी हो जाए वो
अपने मां पिता जी को प्रणाम करना नहीं भूलते हैं
कभी। मां पिताजी ने देवू से कहा," चिरंजीवी रहो बेटा
जी " देवू ने कहा ,जी। तत्पश्चात् संगीत का रियाज
करने के लिए देवू अपने कमरे में आ गया।

देवू मन ही मन सोच रहा था कि पहले एक दो
मनपसंद गीत सुन लेता हूं। तत्पश्चात् नाश्ता पानी
करेंगे। फिर शिखा से मिलने का प्लान बनाया जाएगा। जिंदगी की नयी शुरुआत करने से पहले
थोड़ा सोच विचार कर ही वो आगे बढ़ना चाहते हैं।
ताकि मां पिताजी को मेरा लिया गया निर्णय
सही लगे।

देवू की मां ने पूछा , देवू आज तो तुमने
सुबह सिर्फ चाय पी है । चाय के साथ कुछ भी नहीं
लिया है। आओ चलो चलकर डाइनिंग टेबल पर
सब इकट्ठे नाश्ता कर लेते हैं। देवू मां के साथ हो लिया। पिता जी पहले से ही बैठे हुए सबों का इंतजार
कर रहे थे। उन्हें भी लग रहा था कि त्यौहार पर
परिवार एक साथ रहें।

नाश्ता करते हुए सभी लोग आपस में अपने
अपने मन पसन्द टापिक पर बातचीत करते रहे थे।
देवू ने मां पिताजी से कहा, "आज आप लोग हमें अपना फेवरिट डिश बताएं " मैं बनाऊंगा आज खाना
आप लोगों के लिए। देवू के माता-पिता यह बात सुनकर बहुत खुश हो गये थे।

देवू की मां ने कहा देवू
से कि लंच तो हमने बना दिया है। तुम रात में जो
तुम्हें पसंद हो वही बना देना । विशेष कुछ नहीं बनाना है , खीर या हलवा बना देना जो तुम्हारा मन करे।
देवू ने कहा , ठीक है । देवू ने मां से कहा कि मै जरा
शिखा से फोन पर बात करने जा रहा हूं।

शिखा ने देवू से फोन पर कहा कि , अभी तो मैं
फ्री हूं। लेकिन तुम जल्दी आ सकते हो , तो आओ।
देवू ने कहा , बस मां से कह कर अभी निकलता हूं।
पहले मैं तैयार होता हूं फिर डिस्टीनेशन तय करेंगे।
देवू ने मां से पूछा कि , तुम्हें घर का कोई काम तो
नहीं है । मां ने कहा , नहीं है, अब तू जा,आज
त्यौहार पर शिखा से मिलने चला जा। देवू ने शिखा
को फोन करके कहा, बस हमलोगों का जो पुराना
प्रेम साक्षी स्थल है , तालाब के किनारे पर , वहीं
चले चलते हैं। शिखा ने कहा, ठीक है। हमें भी
वहीं जगह पसंद है।

शिखा और देवू दोनों आज दिवाली के त्यौहार पर
एक दूसरे से मिलने के लिए जा रहे हैं। मन में आशाओं के फूल खिलने लगे हैं। ऐसा लग रहा था
कि कब दोनों जल्दी से जल्दी तालाब के किनारे
पर पहुंच जाएं। खैर , इंतजार अब खत्म हुआ। दोनों
आमने-सामने थे। शिखा और देवू दोनों धीरे-धीरे
चलते हुए तालाब के किनारे पत्थर के पास पहुंच
गये हैं। दोनों चुपचाप थे। देवू ने शिखा से कहा कि
कुछ बोलोगी या फिर मौन व्रत धारण किया है क्या ?

शिखा ने कहा, तुम कुछ कहो ।
देवू ने कहा, तो तुमने क्या सोचा है?
शिखा ने उत्तर दिया, मैं तुम्हीं से शादी करूंगी।
देवू ने कहा, फिर ठीक है।
मैं अपनी मां से कह दूंगा।
फिर देवू ने पूछा शिखा से तो यह तुम्हारा जवाब
सही और सटीक है।
शिखा ने कहा, हां १०० प्रतिशत सही।

दोनों अपने अपने निर्णय पर अडिग हैं। देवू ने शिखा से पूछा, तुम दिन तारीख सोच कर हमें
बता देना। मैं आज तुमसे यही पूछने आया हूं।

शिआ और देवू दोनों ने दिवाली पर शुभकामनाएं एवं बधाइयां एक दूसरे को दिए और घर की ओर प्रस्थान कर गये हैं।

मानव और बूढ़ा के साथ मां दिवाली पर
बाजार करने निकली है। घर में ताला लगा दिया
था और पड़ोस की वीणा आंटी को चाभी दे दिए
थे। शिखा ने घर पहुंचकर देखा कि ताला बंद है।
वीणा आंटी के यहां जाकर शिखा ने चाभी ली और
ताले खोल कर घर में प्रवेश कर गई।

आज पहली बार शिखा को घर सूना लगा। वो
मन ही मन सोच रही थी कि अब तो उसे भी अपना
घर बसाना होगा यही सोचकर उसने एक कप चाय
पीना उचित समझा।

चाय पीते हुए शिखा अपने भावी जीवन की
चिंता में मगन हो गई थी। उसे आवाज सुनाई भी नहीं दी कि डोर बेल बज रही है। शिखा ने उठकर दरवाजा
खोला। उसने मां से सारी कहा, देर से दरवाजा खोलने के लिए। मां ने कहा, कोई बात नहीं।

शिखा को आज अजीब सा लग रहा था कि
उसे भी मां को छोड़कर जाना पड़ेगा। किसी तरह
से उसने अपने मन को शांत किया और फिर रात
का भोजन बनाने में लग गई।

शाम की चाय बना कर मां भाईयों को दी।
उसके बाद फ्रेश होने चली गई।

जय जय मां शारदे। कृपा करो हे मां शारदे।
लेखनी को नमन मां शारदे।‌ लेखों को सार्थक बना दे हे मां शारदे। कोटि-कोटि प्रणाम मां शारदे।
जय जय मां शारदे।

-Anita Sinha

Hindi Microfiction by Anita Sinha : 111904819
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