रहबर फरोशा ए मजाक, सत्ता मदहोशी रोज वही विकार
गाफिल खुदद की निंदा, बेशर्म बेचे रोज वही व्याभिचार
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में तो वही बुलन्दी पर हूॅं दोस्त, हिमालयी गुरबत आसार
वादे तु रहन दे, कुर्सी पर चिपका रह, खुब कर अनाचार
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अदानी अम्बानी सकी नादानी, युवा भटके कहा तैरा रूजगार
तिरी तु तो रोज करे, जांत पात या पंथ नी बात रही बेकार