गिरा यू बदबख्त हर बार मुझे या परेशा खाकसार के लिए
रहबर हॅू जहॉंपना क्या छुपा के रहनुमा बस इंतजार के लिए
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हर सागर में मझधार है पढा है किताबा या मकसूद काबिल
टूटी क्यु कश्ती, हाले तरस फिर निकला खाकसार के लिए
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क्या लोग या जिन्दगी है रहनुमा तेरी बातों में तेरी बातों में
खो गये ए जिन्दगी, बन्द गलिया ऐसी मुफत संवाल के लिए
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बिजली नहीं मुफत है सुबह रेलपेल तानो की भरमार मिल
पता नहीं मुझे हर बार ठगा है गाफिर सुरा ए पान के लिए
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हरबार दरबार दरबान से सीख लेता हूॅं जिन्दगी की तफरिह
संवार आका बैठा है महलो में सजा सिपाही राजदार के लिए
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जिन्दगी ए शिकायत, शिकवा ए बराकात बार जानी है उसने
मौका मिला है, कागज भी चकराया दुपहरी मजाक के लिए
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वह बस रोह रहा है भीड़ देखकर गाजा ए बबार्दी जिस तरह
कारीगर ए जोश अल्फाज,कल सुबह और मंच मयार के लिए
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विटठल राघव सज संकुल को चले मचले टाफि के काबिल
हमीं रीत बनाई है रोज ब रोज सितारों रात बनावट के लिए
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मन राम रमता रहे हर रोज, आसरा भी रहे तेरा ओ जामिन
बस दूर रख हमे इन झुठे वादो, बहुरूप धूम धड़ाम के लिए
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जुगल किशोर शर्मा बीकानेर - 04.11.2023