जीवन -
कभी श्वेत,कभी श्याम l
इसके अनोखे रंग - ढंग हैँ l
हतप्रभ हूं इन्हें देखते हुए, महसूस करते हुए l
कभी- कभी तो लगता है कि यह नटखट जीवन अब रुका कि तब रुका l
हां जनाब, इसे कभी - कभी करेंट जैसा झटका भी लगता है और कभी - कभी मखमली एहसास भी होता है l
समझ लीजिए जनाब कि अपनी जिंदगी कुछ अजीब है,
इश्क से बहुत ही गरीब है,गरीबी की रेखा से भी नीचे!
बस, संतोष इस बात का है कि
यही सोचता रहता हूं कि चलो, अपना- अपना नसीब है!
कोई करीब रहकर भी दूर है
तो कोई दूर रहकर भी पास नज़र आता है !
है ना हैरतन्गेज़ बात?
आज से मुझे यह मंच मिला है,
यहीं रखता रहूंगा
जिंदगी के शिकवा -गिले की टोकरी!
अभिव्यक्ति से मिलता है सुकून,
और अभिव्यक्ति करते रहने
करते ही रहने का अपना है ज़ुनून!
सत्तर पार कर चुकी है यह जिंदगी,
लेकिन सोलह बरस वाली चाहत लिए बैठी है I
मन हिरन सा छलाँग लगाता रहता है,
तन अपनी सामर्थ्य देख,
उसे खींचता रहता है l
है ना अजब बात?