🙏🏼जमाना गुजर गया 🙏🏼
बचपन के भी क्या दिन थे,
सारी चिंताओं से मुक्त थे।
खाना,खेलना और पढ़ना,
बस इसमें ही हम युक्त थे।।
जब बचपन बीता आई जवानी,
तब यह चिंता सताने लगी थी।
मायका छोड़,ससुराल जाना है,
ये नई चिंता अब खाने लगी थी।।
ससुराल में कई विचार के लोग,
सबसे ही सामजस्य मिलाना था।
किसी का दिल हमसे नहीं दुखे,
इस बात को मन में बैठाना था।।
जिंदगी के इस उतार चढ़ाव ने,
जीवन में कई रंग दिखाएं है।
अच्छे और बुरे अनुभव में,
तालमेल के भाव सिखाएं है।।
आज उन पलों को याद करके,
सोचती हूं,वो जमाना गुजर गया।।
आज की पाश्चात्य सभ्यता में,
ये जमाना किधर से किधर गया।।
किरन झा (मिश्री)
ग्वालियर मध्यप्रदेश
-किरन झा मिश्री