सुकून की तलाश में, कस्तूरी की आस में
बनकर बावरा ये मानव - मन क्यों भटक रहा है ?
जो उसके अंतः में है क्यों उसका अंत कर रहा है ?
आकांक्षाओं की सीमा में जो करे वही तेरा कर्म है,
अपने सामर्थ्य से जो तू पाए उसमें ही तेरा धर्म है ।
अपने श्रम से उड़ान भरने का रख जुनून
श्रम तेरा ही लाएगा ज़िंदगी में सुकून