हर स्त्री शादी के पहले बेटी ही होती है |
और शादी के बाद बहू बन जाती है |•
सर पर पल्ला रखो ~ अब तुम बेटी नहीं बहू हो.....•
कुछ तो लिहाज करो , पिता सामान ही सही पर ससुर से बात मत करो ~ तुम बेटी नहीं बहू हो......•
माँ ने सिखाया नहीं , पैताने बैठो ~ तुम बेटी नहीं बहू हो........•
घर से बाहर अकेली मत निकलो ~ तुम बेटी नहीं बहू हो.....•
अपनी राय मत दो , जो बड़े कहे वही मानो ~ तुम बेटी नहीं बहू हो......
और फिर उसने खुद को ठोंक – पीट के बहू के सांचे में अपने आप को ढाल लिया अब वो बेटी नहीं बहू थी |
समय पलटा , सास – ससुर वृद्ध हुए और अशक्त व् बीमार भी |
बिस्तर से लग गए |
बताओ कौन सा ट्रीटमेंट कराया जाए , राय दो ~ तुम बेटी ही तो हो सास से बिस्तर से उठा नहीं जाता~सिरहाना.पैताना मत देखो , अपने हाथ से खाना खिला दो ~ तुम बेटी ही तो हो ससुर सारा दिन अकेले ऊबते हैं
~ बातें किया करो , तुम बेटी ही तो ह.ससुर के कपडे बदलने में संकोच कैसा ~ तुम बेटी ही तो हो |
.अब उसकी भी उम्र बढ़ चुकी थी |
बेटियाँ मुलायम होतीहै , लोनी मिटटी सी , बहुएं सांचे में ढली हुई , और तराश कर बनायी जाती हैं |
दुबारा बहू से बेटी में परिवर्तनअसहज लगा त्रुटियाँ रहने लगी..... |
सुना है घर के तानपुरे ने वही पुराना राग छेड़ दिया हैकुछ भी कर लो.....................
बहुएं कभी बेटियाँ नहीं बन सकती |
वाह क्या कहना समाज के उसूल ओर दस्तूर केबारे में आज भी जारी है कि चाहे ससुराल वाले बहु को बेटी न माने परंतु अपने स्वार्थ के लिए बहु से बेटी बनकरसेवा लेना चाहते है
लेकिन मेरा विचार है कि पहले आप बहु को बेटी की जगह दे और फिर बेटी जैसी होने की आशा। रखे ऐसा अवश्य होगा।
क्योंकि बेटी से बहु बनने में थोड़ी कठिनाई हो भी सकती है लेकिन बहु से बेटी बनने में तोकतई नहीं..."
What is the great thinking of our society"Clap on them
🥵 🙏🏻