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लिखती है ये कलम व्यथा तो अश्क निरंतर बहते हैं
जाने कौन से देव धरा पर सैन्य रूप धर आते हैं
सोच के दशा वीरांगनाओं का थर थर कांप रहा है मन
करे जवानी जो कुर्बान देश पर गुँजन शीष झुकाती है।।
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पूरी रचना कल के साझा संकलन में .............