कागज और कलम
दिल के जज्बातों को,
कागज पर उतार दिया।
अपने शब्दों में पिरोकर,
कलम से संवार दिया।।
जिससे बोल नहीं सकते,
अपनी भावनाएं दिल की।
उसे एक खत में लिखकर,
मैनें उन तक पहुंचा दिया।।
पढ़कर उन्होंने हाले दिल,
फिर धीरे से मुस्कुरा दिया।
अपना भी हाले दिल लिख,
कागज पर कलम चला दिया।।
मैं हूं एक कोरा कागज सा,
प्रेम से इसे तुम रंग जाना।
मुझे बनाकर अपनी कलम,
कोरा कागज ये भर जाना।।
बनना तुम ऐसी प्रिय सखी,
तोड़ न पाए दुनियां की रीत।
दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाए,
हम दोनों के मध्य की प्रीत।।
किरन झा मिश्री
-किरन झा मिश्री