धडकने जो तुम्हारी एक आहट से तेज़ हो जाती थी,
वह अब कुछ सहमी हुई है।
वह मुस्कुराहटो मै भी नमी छाई हुई है।
एक वक़्त था जब,
बस पल भर की दूरी बेचैन कर देती थी
और
आज़
खो गए है हम दोनो,अपनी अपनी भीड मैं।
अब
शाम ढल रही है,
भीड़ भी बिखर रही है,
पंछी सब पेंड पर आ रहे है,
तुम भी वापीस आ रहे हो ना?
डो.चांदनी अग्रावत