कृष्ण -राधा
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खोई है राधा बंसी की धुन में
कृष्ण समाए हैं राधा के मन में
प्रेम की गंगा बहती अविरल
दोनों रंगे एक दूजे के अंतर्मन में ।
प्रीत है उनकी जग से निराली
महकती है उनसे फूलो की डाली
त्याग की हैं दोनों अनूठी मिसाल
सूरज भी लेता है उनसे ही लाली।
प्रेम की सीखें सब उनसे परिभाषा
मूक है सदा से ही प्यार की भाषा
त्याग होता है हमेशा जीवन में महान
निस्वार्थ रखें अपनी जागी अभिलाषा।
आभा दवे
मुंबई