लिखा कुछ और दिखा कुछ और .............................
हर तस्वीर में आज़ादख्याली दिखाई देती है,
अल्फाज़ों में परिपक्वता छलकती हैं,
कह - कह कर बताते है दुनिया को दुनियावाले,
हमने किस कदर लड़कियों के बैड़ियों से आजा़दी दे रखी है................................
सब दिया ना कहने का ह़क ना दिया,
बाहर जाने तो दिया मगर बिन बताए कहीं जाने ना दिया,
समय कुछ और बताता रहा वो हमसे कुछ और कहते रहे,
घड़ी की सूई को अपने हिसाब से चला कर,
हमसे हिसाब मांगते रहे..............................................
उनके तजुर्बों ने हमें खुद से कुछ सीखने ना दिया,
वो कहते रहे हमने जो कह दिया सो कह दिया,
फिर समझ आ गया कि पेंसिल से जो चित्र बना वो कितना विचित्र है,
हमें बनाने वालो के लिए हम आज कुछ और है,
और कल कुछ और है...................................
स्वरचित
राशी शर्मा