Hindi Quote in Poem by rashi sharma

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ख्वाहिशों का युध्द.......................................



पहले पहल ये बड़ी अच्छी लगी,

कभी रूई जैसी, कभी कागज़ जैसी,

फिर अचानक ही पहाड़ बन गई,

एक के बाद एक ये जुड़ती चली गई,

आशा की ड़ोर से बंधती चली गई.........................................



कभी भागा करते थे इसके पीछे बेतहाशा हम,

किसी एक के भी छूट जाने पर घिर जाते हताशा से हम,

मुतमइन कभी ना हुए उसके मिल जाने पर,

रहे उदास ऐसे जैसे हम गिर गए बीच चौराहे पर...................................



इसकी लत और आदत ने हमें कुछ इस तरह बिगाड़ दिया,

ताकत तो खत्म हो गई मगर इस ख्वाहिश ने हमें,

खुद ही में मार दिया,

अब धकेल रहे है उसी पहाड़ को ताकि वो मंज़िल पर पहुँच जाएं,

खुद में तो कुछ बचा नहीं चलो ख्वाहिशों को ही ज़िंदा रखा जाएं...................................





स्वरचित

राशी शर्मा

Hindi Poem by rashi sharma : 111882000
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