चाहे मुझे दुनिया कहो, चाहे कहो मुझे तुम संसार,
कदमों तले ज़मीन हूँ मैं और सिर की ओर मैं हूँ आसमान,
अपनी दुनिया का मालिक मैं अपने हिसाब से चलता हूँ,
रोज़ाना यात्रा पर निकलता हूँ और वहीं ठहर कर विश्राम भी करता हूँ.....................
दिन का उजाला हूँ मैं, स्याह जैसी काली रात भी,
कभी चिलचिलाती धूप हूँ मैं, कभी धीमी सी फुहार भी,
हूँ तो एक ही आसमान फिर भी मिजाज़ थोड़ा हट के है,
पूछ लो ज़रा विदेश में क्या हम वहां भी यहां के जैसे है................................
दिन को खामोश मैं रात को लोग मुझसे बात करते है,
सोने ही नहीं देते बस एक टक देखते रहते है,
आदत हो चुकी है मुझे इस दिनचर्या की,
देखों ज़रा गौर से क्या मैनें शिकायत की कभी..........................................
स्वरचित
राशी शर्मा