प्रकृति और हम
प्रकृति अर्थात जो निरन्तर नया निर्माण कर रही है उस निर्माण मे पृथ्वी एक कण के समान है और हमारा अस्तित्व नगण्य | हम प्रकृति की रक्षा की जब बात करते है तो वास्तव मे हम अपनी सुरक्षा की बात करते हैं | हमारी महत्वाकांक्षा प्रयोग करवाती है और प्रयोग के परिणाम का भय , भय देता है |