दोहाश्रित सजल
पदांत - आन
मात्राभार -13+11
झूठ कभी टिकता नहीं.....
झूठ कभी टिकता नहीं, मिला न जग में मान।
कुछ मन को भरमा रहे, गा-दरबारी-गान।।
अहंकार में जो जिए, मानवता से दूर ।
जीवन भर उसको मिले, द्वेष घृणा अपमान।।
गीता का संदेश ही, जग का है उद्धार।
कर्म-धर्म वैभव प्रगति, के फिर सजें वितान।।
हम घूमें परदेश में, दिल का मिटा न क्लेश।
याद बहुत आती रही, स्वजन-देश पहिचान।।
भारत की संस्कृति का, समझा है तब अर्थ।
बसे प्रवासी दिलों में, भारत हुआ महान।।
किस्मत में कब क्या लिखा, कौन जानता मर्म।
कुटिया का छोटा दिया, जला मिला सम्मान।।
धूप छाँव जीवन मरण, सबको है आभास।
सदा मिले सुख दुख उसे, ईश्वर का वरदान ।।
कर्म सदा चोखे करें, रखे उसे जग याद।
जीवन में यह आपको, दिलवाए पहचान।।
सबकी है यह चाहना, जिएँ बुढ़ापा नेक ।
जो संतापों को हरे, हो ऐसी संतान ।।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज
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