Hindi Quote in Blog by Jyoti Prakash Rai

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पृथ्वी पर जितने भी जीव हैं चाहे वह किसी भी रूप में हो सब प्रकृति के प्रभाव में ही जीते और मरते हैं। प्रकृति हमारे लिए जितना लाभदायक है उससे कहीं ज्यादा हानिकारक भी है। कहने का तात्पर्य यह है कि हम प्रकृति का सदुपयोग करेंगे तो लाभ मिलेगा और दुरुपयोग करेंगे तो हानि स्वभाविक है। जैसे रास्ते में जा रहे किसी कुत्ते को पत्थर मारने पर वह काटने दौड़ता है उसी प्रकार प्रकृति से छेड़-छाड़ करने पर हमें स्वयं ही दुष्प्रभाव झेलना पड़ता है।

इस युग में यदि किसी का दोहन हो रहा है तो वह एक मात्र प्रकृति है। चाहे वह पेड़ों को काटने से हो या पानी का व्यर्थ बहाव हो या वनस्पतियों का जंगलों का आग के चपेट में आ जाना। सब का जिम्मेदार केवल एक मात्र मनुष्य ही है, जिसने अपने स्वार्थ के लिए अन्य जीव - जंतुओं की परवाह किए बिना प्रकृति का जरूरत से अधिक उपयोग किया है। जिसके फल स्वरूप मौसम में परिवर्तन यानी समय से पहले बरसात समय से पहले या समय के बाद सर्दी व गर्मी। इसके बाद भी मनुष्य तरह - तरह की तकनीक का इस्तेमाल कर के वायु मंडल में सेटेलाईट छोड़ना बड़ी-बड़ी मिसाइलें बनाना ईंधन का अत्यधिक उपयोग करना यह सब हवाओं को प्रदूषण युक्त करने के प्रमुख कारण हैं।
और प्रदूषण बढ़ते ही रोगों की शक्तियाँ भी प्रबल होने लगती हैं जिसका सीधा असर मनुष्यों पर तो पड़ता ही है साथ - साथ पशु - पक्षियों को भी झेलना पड़ता है।
आज मनुष्य हकीकत से ज्यादा दिखावे पर निर्भर हो गया है जिसका परिणाम यह भी है कि प्रकृति की ओर ध्यान देने की फुरसत ही नही मिल रही है, सब अपने आप को ही सँवारने में इतने व्यस्त हैं कि प्रकृति की तरफ किसी का ध्यान ही नही जा रहा है।
पौधरोपण के लिए हमारी सरकारें हमेशा प्रयासरत रहती हैं चाहे वो केन्द्र सरकार हो या राज्य सरकार लेकिन जिम्मेदारी उन लोगों की बनती है जो ग्राम पंचायत स्तर पर कार्यरत हैं। उनके साथ - साथ हर व्यक्ति को चाहिए कि वो अपने बगीचों में, खेतों में या अन्य जगहों पर पेड़ लगाए और उसको सिंचित कर आक्सीजन में बढ़ोत्तरी करने के काबिल बनाए।
लेकिन नही उन्हें तो लगता है कि रुपया है तो सब कुछ संभव है यह सोच प्रकृति पर प्रहार ही तो है जिसका निशाना कभी अचूक नही हो सकता यह सोच ही प्रकृति को कमजोर बना रही है जिसका फल स्वयं मनुष्यों को ही भोगना पड़ रहा है।
हमें बचपन में पढ़ाया जाता था की " वृक्ष लगाओ पानी दो, पत्र लिखो तुम नानी को " इसका अर्थ केवल मनोरंजन से नही था इसका अर्थ यह भी था कि जिस कागज पर तुम लिखोगे वो पेड़ काटकर ही बनाए जाते हैं इसलिए पेड़ लगाना भी उतना ही आवश्यक है जितना की पत्र लिखना। किंतु आज के समय में मोबाईल फोन पत्रों का सिलसिला तो कम कर ही दिया है लेकिन इसके रेडियेसन का असर भी सीधे प्रकृति पर और प्रकृति के जरिये सभी जीवों पर गलत प्रभाव डाल रहा है।

धन्यवाद!

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