जीवन के हैं रंग निराले......
जीवन के हैं रंग निराले।
कहीं अँधेरे कहीं उजाले।।
घूम रहा कोई कारों में,
कहीं पगों में पड़ते छाले।
रहता कोई है महलों में,
किस्मत में लटके हैं ताले
प्रजातंत्र भी अजब खेल है,
जन्म कुंडली कौन खँगाले।
नेताओं की फसल उगी है,
सब सत्ता के हैं मतवाले।
कहने को समाज की सेवा,
दरवाजे पर कुत्ते पाले।
गंगोत्री से बहती गंगा,
राहों में मिल जाते नाले।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "
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