“१ मे मज़दूर दिन”
“मैं मजदूर,
नहीं मजबूर,
देव ने बनाया मुझे,
तन मन से मजबूत।
धरती का बोझ मैं हंसकर उठाता,
बदाम,पिस्ता,दूध न पीता न खाता,
दो सूखी रोटी और गहरी नींद से,
मिलती मुझे ताकत भरपूर,
मैं मजदूर।
मेरे फावड़ों की खनक,
मेरे जीवन का है संगीत,
औजारों की तेज धार से,
मेरी रही है गहरी प्रीत,
खेत खलिहान फसलों में हैं मेरे अंश,
यही हैं मेरे गुरूर,
मैं मजदूर।
नहीं चाहिए अनगिनत कपड़े,
अच्छे चप्पलें,सैंडिल जूते,
घास मिट्टी हवा धूप देती मुझे उर्जा,
नंगे पैरों से भी चल सकता हूं,
मिलों कोसो दूर,
मैं मजदूर
न ज़मीन है,न बैक में खाता,
सहकारिता से आपना जुड़ा है नाता,
मजदूर एकता,को हमारा सलाम,
कर्म की ताकत करती हमें मगरुर,
हम मजदूर।
तुम बसाते कंक्रीट के जंगल,
घर छोड़ आ जाते हो पराए शहर,
मैं कमाने आता हूं परदेश,
कुटुंब का नहीं भूलता संदेश,
अपने गांव लौटता हूं जरुर,
मैं मजदूर।
🙏🏻