अस्तता व्यस्तता में क्या क्या छूटा है
उसका क्या हिसाब दूँ
धङकन धङक रही है और जीवन को खबर नहीं।
चिंतन मनन ध्यान योग सबका रस फीका पङा है
धर्मयुद्ध में कर्मयोग से हीं सबकुछ बचाने हेतू
स्वाहा स्वाहा का गूंज सूना है।
समय की कसौटी में कौन रंग कितना निखरेगा
इसका कुछ भी तो पता नहीं
उम्मीद और साहस का साँस लिए हर वक्त लङा हूँ।
तुम देखना सिर्फ संघर्ष की आग को
तुम्हारा जी मचल जाएगा
उसी आग में तपकर सोना बनकर निखर जाऊंगा।
हालात परिस्थितियों के आगे झुकना सीखा हीं नही
नहीं तो कबका पिघल कर बाजार में आ जाता
गुण हुनर हेतु संघर्ष के आग में तपना हीं पङता है
जिंदा हूँ तो जिंदा दिखना हीं पङता है।
-Anant Dhish Aman