अच्छा सुनो!..
मेरा प्रेम जहाज पर ठहरे किसी पंछी सा है।
जो अनथक उड़ता है अनन्त जलराशि पर,
और फिर...लौट आता है तुम्हारे ही हृदय द्वार पर।
लहरें भी तो किनारों से टकराकर वापस ही आ जाती हैं ना।
तभी कहीं दूर गाना बजता है..
खड़ा खिड़की पे जोगी स्वीकार कर ले,
झूठा ही सही..❤️ Skm।।
-किरन झा मिश्री