क्षितिज, भूषित
1 क्षितिज
क्षितिज नापने उड़ चले, पंछी नित ही भोर।
शाम देख कर आ गए, सुनने कलरव शोर ।।
वायुयान में बैठ कर, उड़े कनाडा देश।
अंतहीन इस क्षितिज का, समझ न पाया वेश।।
2 भूषित
धरा वि-भूषित वृक्ष से, करती है शृँगार।
प्राणवायु देती सुखद, जीवन हर्ष अपार ।।
भूषित प्रकृति संपदा, दर्शन का उन्मेश ।
पर्यटक आते देखने, मिटते मन के क्लेश।।
मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "