असित-गिरि-समं स्यात् कज्जलं सिन्धु-पात्रे।
सुर-तरुवर-शाखा लेखनी पत्रमुर्वी।।
लिखति यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं।
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति।।
सरलार्थः-
हे ईश, यदि समुद्रस्य मसीपात्रं भवति, कृष्णपर्वतस्य कज्जलं भवति, कल्पवृक्षस्य शाखा लेखनी भवति, पृथ्वी पत्रं भवति, तथा च एतैः साधनैः शारदा देवी सर्वकालं तव गुणान् लिखति, तथापि सा तव गुणानां पारं न गमिष्यति।
यदि समुद्र को दवात बनाया जाय, उसमें काले पर्वत की स्याही डाली जाय, कल्पवृक्ष के पेड की शाखा को लेखनी बनाकर और पृथ्वी को कागज़ बनाकर स्वयं ज्ञान स्वरूपा माँ सरस्वती दिनरात आपके गुणों का वर्णन करें तो भी आप के गुणों की पूर्णतया व्याख्या करना संभव नहीं है।