होली की मुबारक बाद कैसे दूं ? किसी को।
मुबारक शब्द तो इस त्योहार से पूर्णता विपरीत है।
हरे रंग से अब खेलूं कैसे होली ?,
हरा रंग तो एक कौम का प्रतीक है।
रंग लगाकर के मैं नारंगी , धर्म से पंगा ले लूंगा। !
इतनी बाधाए,विपदा में , मैं कैसे होली खेलूंगा ?
छोड़ो
तुम सब जाओ खेलो मैं ऐसे ही रह लूंगा।
अरे चच्चा तुमहु को बहुत दर्शन सुझत है यार
तो सुनो ,
न दो मुबारक बाद ,तुम आशीर्वाद दे डालो।
विपरीत कुछ भी है नही बस एसा कह डालो।
हरा पीला नीला लाल गुलाबी संतरी
ये रंग हैं , किसी कौम का प्रतीक नहीं.
रंग लगाकर खुद भीगो, सबको और भीगाओ।
कौम जाति से परे है होली ऐसी बात सुनाओ।
परमानंद मगन मन होकर चच्चा फागुन गाओ।
अच्छा
तो एक काम करो ,
तुम सब अब वापस आ जाओ।
हचक के रंग लगाओ।
घर आंगन रंग डारो सब मिल।
मैं तो गुझिया पेलूंगा।
अब मैं भी होली खेलूंगा।
-Anand Tripathi