बचपन के दिन।
बचपन के दिन बड़े होते हैं सुहाने।
समाए होते हैं इनमें यादें कुछ अलबेले और मस्ताने।
भाई बचपन के दिन में तो होते हैं बच्चों के
खेल निराले।
बचपन में दादा दादी नाना नानी के संग बीते जीवन
सुन सुन अजब गजब किस्से कहानियां और चुटकुले
जिनमें होते थे छिपे हुए अनोखे लाड़ प्यार और
मस्तियों के तराने।
खेत खलिहान में धमा चौकड़ी मचाते और खेतों में
नानी के संग गन्ने के खेत में छिप जाते।
बहुत मिन्नतें करने पर हम बाहर आते
और फिर नानी से मिलते मीठे मीठे बेर शहतूत।
गांव घर बासा का दौर बड़ा ही पावन और मनभावन
होता मेरी सखियों ।
सुन सुन मेरे बचपन की यादों के धुन।
भौंरे करते फूलों पर गुनगुन।
हम दौड़ते रंगीन तितलियों के पीछे
नानी कहती मौसी सावधान करती सुन अलबेली।
ना जाइयो पतली पगडंडियों पर
नीचे है गहरी बावड़ी।
आ जा आ जा अब ना कर हंसी ठिठोली।
आई है तेरी सखियां हमजोली।
फिर नानी करती मनुहार
चल खा ले सखियों संग भागलपुर की बालूशाही
लौंगिया और टिकरी।
फिर दूंगी दही चूड़ा और पेड़ा।
नानी फिर कहती संग में दूंगी मिहिदाना बून्दी
वर्धमान की और कृष्ण भोग आम बहुतेरा।
इस तरह मनाने पर मैं दौड़ी हुई चली आती।
लाल घेर दार फ्राक नानी ने पहनाया
और काजल टीका लगाई।
अब मैं कहां रुकने वाली थी
फिर चली गई आम के बागान में
जहां खा रही थी आम सब सखि मिलकर
शामिल हो गयी मै भी संग सखियों के धमा चौकड़ी
मचाने गांव के खेत खलिहान और आम बागान में।
बीता बचपन पता नहीं चला। लेकर आया था सुख
का का सागर घनेरा।
चलो सखि सैर करने अब हो नया सबेरा।
नानी नाना के याद में।
यादों के संस्मरण बचपन में।
शत शत नमन नाना नानी के चरणों में।
-Anita Sinha