खामोश लफ्ज
तुम्हारे साथ जिंदगी को मैंने,
कई रंगों के साथ देखा था।
सुख का पल हो या दुख का पल,
मिलकर दोनों ने साथ झेला था।।
तुम्हारे मिलने के बाद ही मुझको,
मेरी खामोशी जैसे टूट गई थी।
लफ्ज बहुत कुछ बोलने लगे थे,
आंखें भी सिर्फ तुम्हें ढूंढने लगी थी।।
बने थे तुम मेरे प्यारे से एक दोस्त,
पर दिल कुछ और ही मांग रहा था।
तुम्हें अपने दिल में बसाने का,
मेरा मन बस तुम्हें चाह रहा था।।
पर तुम्हारे दिल और दिमाग में,
किसी और ने जगह बनाई थी।
इस लिए ही तुमने मना करके,
हमसे अपनी आजादी पाई थी।।
हमनें भी तुम्हारी उन बातों को,
दिल से अपने स्वीकारा था।
सब बंधनों से मुक्त करके तुम्हें,
तुमसे कर लिया किनारा था।।
अब मैं तो अपने आप से ही,
सवाल जबाव कर लेती हूं।
कोई नहीं है उत्तर देने वाला,
यही दिल को तसल्ली देती हूं।।
उनकी इस बेरूखी पर हमनें भी,
अपने लफ्जों को खामोश कर लिया।
नहीं रही अब चाहत किसी की,
इन बातों का अब मोह छोड़ दिया।।
अब अपने आपको खामोश करके,
भावनाओं का परित्याग कर दिया।
मिलती रहें खुशियां उन्हें जीवनभर,
अपनी खुशियों को भी उनके नाम कर दिया।।
किरन झा (मिश्री)
-किरन झा मिश्री